Sunday 12 April 2015

माँ के आँसू

माँ के आँसुओ की कीमत कौन चुकाएगा
बहन के हाथ में रक्षा का धागा कौन पहनाएग
दुःख की बहती इस नदिया में अब
उस बाप को कौन ये दुःख का हल बताएगा
भाई के सपने मिट्टी में मिल गए
साथी-मित्र सब रुखसत हो गए
पलभर में सूरत बदल गई जहाँ की
पलभर में कुनबे उजड गए
कितना आसान है तबाह करना
कितना आसान है मरना और मारना
पर क्यों मुश्किल लगता है
इस जमीं पर बसना और बसाना
कब तक सीखेगें हम मानवता को
कब तक समझेंगे हम हालात को
क्यों करते है इतना खून-खराबा
कब तक जानेंगे खुदा की इस कायनात को

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