Sunday 12 April 2015

आतंक का साया

ए जालिम कितनें मासुमो को तुमने हलाल कर दिया
पाक जमीं को तूमने उनके खून से लाल कर दिया
जरा भी नही सोचा देख कर उनके फूल से चहरो को
उठाई बन्दूक और फिर चारों ओर कत्लेआम कर दिया
रूह ने तुझको भी रोकना चाहा होगा ज़ुल्म करने को
कितना नापाक था तू उसको भी दरकिनार कर दिया
दरोदीवारें भी रो पड़ी होंगी देख कर वो नापाक मंजर
रोया नही तेरा दिल और तूने कितनो को खत्म कर दिया
ए खुदा कब तक देखेगा खेल दहशतगर्दी का इस जहाँ मेँ
'सागर' इन जलिमो ने सारी मानवता को शर्मसार कर दिया

No comments:

Post a Comment