Thursday 21 May 2015

कल,आज और कल

भूख को बेबस बिलखते देखा मैने
गरीबों की आँखों में लाखो का ख्वाब देखा मैने
शरद हवाओं में नंगे शरीर ठिठुर गए
और किसी के वदन पर लाखों का सूट देखा मैने

बात करते है जो सम्मान और भारत स्वाभिमान की
उन्ही को औरत के वेश में भागते देखा मैने
गरीबों को ठूंस दिया जाता है जेलों में
और अमीरो को शान से छूटते देखा मैने

वक्त लग जाता है किसी को समझाने में
और किसी को जुमलों से बहलाते देखा मैने
हर रोज बहा दी जाती है खून की गंगा
और उस छप्पन इंच के सीने को भी सिकुड़ते देखा मैने

कोई तो तरस जाता है एक रुपए के लिए
और किसी को नोटों से खेलते देखा मैने
किसानो की मेहनत का कोई भाव नही यहां
और किसी के सूट को करोड़ों में बिकते देखा मैने

कोई खाता है सताईस रुपए में भर पेट भोजन
और किसी को एक निवाले के लिए तरसते देखा मैने
कोई तो चलता है पैदल अपनी मंजिल पर
और किसी को हर रोज हवाई सफर करते देखा मैने

बड़ी मुश्किल से बनाया था आसिया उसने
उसी को पलभर में उजड़ते देखा मैने
शर्त तो थी तकदीर और तब्दीर बदलने की
लेकिन तकदीर बदलने वाले को भी रंग बदलते देखा मैने

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