नजर और नजरिये में कितना फर्क निकल आता है
किसी को धुंध,तो किसी को धुआं नजर आता है
हर किसी के विचारों का चलन बदस्तूर चलता है
किसी को गिलास भरा,तो किसी को आधा नजर आता है
कोई खेलता है बेझिझक जिंदगी से कयामत तक
और किसी का सारा जहाँ ही,एक खेल बन जाता है
बड़ा अजीब सफर है इस जालिम ए जमाने का
कोई तो हंसता है,और कोई रोता ही रह जाता है
कितने रहते है शान ओ शौकत से इस जहां में
और किसी का जीवन इंतजार में ही गुजर जाता है
किसी को भर पेट मिल जाता है लजीज खाना
और कोई एक निवाले के लिए तरस जाता है
चढा दी जाती है अनमोल चादरें किसी पथर पर
और कोई बदनसीब बाहर ठण्ड से मर जाता है
No comments:
Post a Comment