Saturday 31 October 2015

शौक-ए-मिजाज

है हिन्दू,मुसलमा,सिख कोई,तो रहने दीजिए
मजहब के नाम पर मुल्क ना बटने दीजिए
     बनाने वाले ने कोई फर्क नही किया खून में
     दोस्तों,खून के रंग में फर्क ना होने दीजिए
यहाँ गाथा है गौतम,नानक,कबीरा की
इस शदियों की गाथा को यूँ ना मिटने दीजिए
      यहाँ निशां है भगत,अशफाक,आजाद के
      इन पाक निशां को यूँ न मिटने दीजिए
मिटटी का रंग बदल सकता है इस जहां में
पर इसकी खुशबु को ना बदलने दीजिए
   गर बची है थोड़ी सी इंसानियत कही जिगर में
   तो किसी भूखे पेट को यूँ ना सोने दीजिए
बना लीजिए अपनी महल-ओ-हवेलियां
पर किसी गरीब का आशियाँ ना टूटने दीजिए
    खेलिए सियासत का खेल अपनी ख़ुशी से
    पर किसी मासूम को खेल ना बनने दीजिए
गर है तो रखिए शौक आग से खेलने का
पर किसी गरीब का झोंपड़ा यूँ ना जलने दीजिए
    है सभी इस उन्मुक्त आसमां के परिंदे
    इनकी परवाज को यूं ना रुकने दीजिए

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