खैर, किसी के घर का चूल्हा तो जला यहाँ उमीदों का दीपक कुछ तो जला
उलझे पड़े थे आँधियों में अब तलक इन तूफानी हवाओं ने रुख तो बदला
आँखे जो अब तक सूख सी गई थी अरे उन से ख़ुशी का पानी तो निकला